शुक्रवार, 11 जून 2010

तुम कहते हो-----

तुम कहते हो

तुम कहते हो  इस
दिल की बात सुनो
मन कहता है होश
का खयाल रखो
 तुम कहते हो इन आंखों
में गम भूल जाउं
बूढी आंखों के पानी
को कैसे भूल जाउं?
 तुम्हारे केशों में
अपना आसमां तलाशूं
या राशन की कतारों
का हौसला रखूं
तुम्हें हमसफर बना कर
हसीं घर में खो जाउं
या भाई की तालीम
बहन का घर बसाउं
 तुम्हारे कांधे पर सर रख
कर दुनिया को भुलाउं
या इस जहां के कारवां
में  अपनी जगह बनाउं
सिर्फ मुहब्बत से जिदंगी का
इक दिन कटता नही
जिंदगी को भुला कर
मुहब्बत  कर सकता नहीं 
मेरे हाथ के फूलों को नही
खरोचों को भी थामना होगा
जिंदगी में ही नही सपनों में
भी हकीकत से सामना होगा!!
....................किरण राजपुरोहित नितिला

4 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

सुंदर पोस्ट

Vinay ने कहा…

बहुत ख़ूब, उम्दा
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गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati

Shekhar Kumawat ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

आचार्य उदय ने कहा…

आईये पढें ... अमृत वाणी।