भोर की पहली किरण
मन से मनव्योम तक ----
मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
शब्द_
शब्द
अपने अर्थों के
आयाम समेटते
संकीर्ण होते
समकालिक सिद्ध होने की लालसा में
-शब्द
क्यूं बिसारने लगे अपने अर्थ
उतरे बिखरे
विद्रोही वे अर्थ
हो न हो अब
टूट पेडेंगे सभ्यता पर !
.....................किरण राजपुरोहित नितिला
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