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उत्तर ही हुये जब
प्रश्न से गुत्थम गुत्था क्या खोजें?
चांदनी ही झुलसाये
कंांेपल को
तब क्या प्रखर धूप को इल्जाम दें ?
सुबह उदास सी जगे
थकी सांझ को क्या बजें?
रिश्तों की चुभन ही क्या कम थी?
जो अब गीत भी चुभें
दूरी ही आततायी बनी
और कहते हो न आयंे तो?
जीवन के झंझावत क्या कम थे
मौसम के थपेड़े आ आ टकराये
मन के दावानल में झुलसा तन
क्या गुहार लगाये,
भीतर का प्रश्न ही दुबक गया तो
उत्तर किसको गले लगाये?
बिन भाव के
उत्तर कब तक लंगड़ाये?
बिचैलिया आ आ गांठ लगाये
प्रश्न हुये अनुत्तरित से
मौन ने साधा अगणित रोष
भटके भाव
ढूंढ लिये
तमाम रस
शब्द शब्द
कोश कोश
अब गूंगी भाषा क्या कहे?
---किरण राजपुरोहित नितिला