शनिवार, 1 अगस्त 2009


स्मृतियों के चलचित्र

स्मृतियों
का किवाड़
थपथपाता है
कभी कभी ये मन
फुर्सत में
अतीत को जीवंत करने
बैठ जाता है ये मन,
ये गहरा मन
दुहराता है
स्मृतियों के
चलचित्र
मानस पट पर उभरते है
वे चेहरे जो
आपधापी में विस्मृत से हेा गये
अब जाने क्यूं
याद आकर
भले भले से लगते
अपनापन लिये हुये,
लगता!
इन्हें इस तरह
बीत जाना जान कर
मुठ्रठी में भींच कर
क्यूं न रख लिया,
बचपन का हर पल
याद भले नहीं
लेकिन कई चेहरे
अब याद कर कर के
एक प्रष्न के
सटीक उत्तर की भांति
रटे जा चुके हैं,
जब चाहा
मानस में आकर
बैठ जाते हैं वे
और यादों की
नटखट खिड़कियां
खुल खुल जाती है
वर्षों पुरानी
सुगंधित हवा
नथुनों में
तैरती सी लगती है
फिर से जानी पहचानी
और पुराने चलचित्र
लड़खड़ा कर संभलने लगते है!!!!!
.........किरण राजपुरोहित नितिला

1 टिप्पणी:

शोभा राजपुरोहित ने कहा…

तारीफ के लिए शब्द नही मिलते ..