रविवार, 2 अगस्त 2009


म्ेहनत का सार लघु कथा

एक बार महादेव को दुनिया पर बहुत क्रोध आया। षंख नही बजायेेगंे। महादेव षंख बजायें तो बरसात हो। अकाल पर अकाल पड़ा। पानी की एक बूंद भी नहीं बरसी। दुनिया बहुत कलपी बहुत पा्रयष्चित किया पर महादेव टस से मस नही हुए।
एक बार महादेव और पार्वती आकाष मार्ग से कहीं जा रहे थे। क्या देखते हैं ऐसे भयंकर सूखें में भ्ी एक जाट खेत जोत रहा है । एडी से चोटी तक पसीने सराबोर। भोले बाबा के अचरज का पार नही। बरसात हुए तो जमाना हुआ । फिर यह खेत में क्या कर रहा है? इसका दिमाग तो नही चल गया?
विमान से उतर कर चैधरी के पास गये। पूछा ‘‘ पगले क्यों बेकार मेहनत कर रहा है? सूखी धरती में पसीना बहाने से क्या लाभ! पानी का तो सपना भी दुर्लभ है ’’
चैधरी बोला ‘‘ ठीक कहत हो,पर जोतना भूल न जाउं इस लिए हर साल खेत जोतता हूं। जोतन भूल गया तो पानी बरसा न बरसा बराबर।’’
बात महादेव को भी जंची पर सोचा अरसा हुआ मैंने भी षंख नही बजाया। कहीं बजाना भूल तो नहीं गया?’’

वहीं खड़े खड़े षंख जोर से बजाया और चैफेर घटाएं घुमड़ी । बेहिसाब पानी बरसा।
आभार श्री विजयदान देथा

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