गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

रोज शाम ...........................
जाने क्यूं
रोज शाम
सूरज धरती के पीछे
दुबकने लगता है,
खुशी से गले मिलते है
या चुपके से
सुबकने लगता है,
दिुनया की रंगत
दिन भर देख
बस निढाल हुआ जाता है,
छुपकर रिश्तों के
मायने
समझने लगता है,
चांद को
रात के पहरे पर बिठा
जरा दम लेता है,
तारों जड़ी चूनर ओढ
धरती चली
जुगनु की रुनक झुन पर

भोर के हाथ
चांदनी की पाती भेज
सहलाया क्ष्ािितज पर,
सितारों को उंघता देख
सोच में डूबा अंधेरा,
यूं न अधीर हो
जगद्त्राता!!
जीवनाधार!!
नितिला की प्रतीक्षा में है
समस्त प्राणी
रिष्मयों के रथ पर हो सवार
अब आओ !!.............
किरण राजपुराेिहत िनितला

नितिला -सूरज की पहली किरण




4 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

आना-जाना देखते, रवि का चुप रह वृक्ष.
वीतराग हैं जनक से, शोक न करते दक्ष..

शोभा राजपुरोहित ने कहा…

बहुत खूब

KULDEEP SINGH ने कहा…

BAHUT UMADA RACHANAYE HAE AAPAKI.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.

संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com