गुरुवार, 21 मई 2009


ये क्या हो गया है?
अजान आरती एक सुर मेंहो
वेा दिन लद गये हैं
पहले बात और थी
हथियार अब नंगे हो गये हैं,

मां की सेवें अम्मां की सिवइयां
इक आंगन सूखी थी
गरम हुये खून 
पे्रम प्यार ठंडे हो गये हेेैं,

चुन्नी बुर्का ओढ़ने
झूले साथ सावन में
लाल पीले भूरे
सब बदरंगे हो गये हैं,

राख हुई किलकारियां 
चूड़ी पायल
हंसते घर वीरान 
सूने खंभे हो गये हैं,

युगों का प्रेम भूल
अंगार सीने में लिये है
राह में गाय मरी 
बस दंगे हो गये है
   


कोई टिप्पणी नहीं: