सोमवार, 1 जून 2009



वे़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ा.................

उदास चेहरा 
वो दबी सफेद साड़ी में 
गीली आंखें 
आसमां देखती खिड़की से,
वर्ष घिसटती 
काले सीले कमरे में,
रंगों से बहुत दूर 
पटकी गई कोने में,
बांधी गई 
रिवाज मजबूरी के खूंटे से
वो चहकती चिड़िया
बैठी थी
बाबुल के मुंडेर पर,
सफेद रंग छूटे 
सतरंगे सपने जागे
 देखे नीला आसमां 
आस भरी आंखें
 उसके आंगन 
हवा झूमेगी खुशी से
तब ये आंखें
 छलकेंगी खुशी से!!!!!!!!

-किरण राजपुरोहित नितिला

1 टिप्पणी:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा…

किरण जी, इस पृष्ठ की रंग योजना बदलिये. गहरे हरे रंग पर मुद्रित कविताएं पढ़ने में बड़ी असुविधा होती है.