सोमवार, 28 सितंबर 2009


एक शाम..............

एक शाम
यूं ही
चल रहा था
दिन
अपनी रफतार से
ढल रहा था
पगडंिडयेां की
दूर्वा
झुक रही थी
सामने एक साया
चला आ रहा था
बेदाग नजरें
वहीं जाकर
टंक गयी
वो साया
दिल में
उतर रहा था
कदमों में
मासूम थकन थी
गालों से
कानों तक
दहक रहा था
एक बार
मुड़कर
देख लिया जरा
दिल में
दूजा चेहरा
उतर रहा था
एक दूजे में
या
एक में दो दिल थे!
कैसा अजब माजरा
बन रहा था
सपनों की
हकीकत में
हाथ डाले थे
बिन आग
बिन तपन 
छाला पड़ रहा था!!
ििकरण राजपुराेिहत ििनितला




3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

दशहरा विजयत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना

alka mishra ने कहा…

sham ,saya aur dil ...
waah

Divya Narmada ने कहा…

उदित हुआ या अस्त रवि, समझ सका है कौन?
विस्मित नभ देखे 'सलिल', हर पल रहकर मौन..