छू कर मेरे मन को
कांच का टुकडा़ टूट कर तेज धार वाला छुरा हो जाता है वही कैफियत इंसान के दिलक की है।
प्रतिभा बिना विघा,कंजूस का ध न अैर मुर्ख का बल किसी काम नहीं आता।
कायर बहुसंख्यक होना चाहता है जबकि बहादुर अकेले लड़ने में शान समझता है ।
दुनिया में जो बदलाव हम चाहते है ंवैसा बदलाव हमें पहले खुद में लाना हेागा।
पुरुष बढती उम्र महसूस करता है और स़्त्री के चेहरे पर बढती उम्र दिखाई देती है।
1 टिप्पणी:
बहुत सही कहा गया है । अपनी पोस्ट को शीर्षक जरूर दे ।
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