भोर की पहली किरण
मन से मनव्योम तक ----
सोमवार, 4 मई 2009
क्षणिकायें
श्वासहै
आस है
मुक्ताकाश है
फिर किसका इंतजार?
दर्पण में छवि
तुम्हारी है
रुप बदला तो क्या
आधार शिला हो
सृष्टि की
सदैव दब कर रहोगी?
बादलों की ओट से
झांक रहा भविष्य
अब तुम्हें चेतना होगा!!!
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