सोमवार, 4 मई 2009

कविता

घटनाओं का दवंद
होता है मानस में
विचारों का मंथ्न
झकझोर देता है
अनेक सिरेे दृश्टिगोचर होते है
एक सिरे को थाम
लेखनी भाव हदय मानस विचार संवेदना के गहरे शब्दों की माला
पिरोती चली जाती है
गहनतम प्रेरणा से
लता की तरह
शब्दों से लिपटती एकमेक होती
नवजातकचनार सी
बढती ही जाती हे ,
सोच विचार दृष्टिकोण के
फूल खिलाती
तृप्ति का गंधपान कराती
मन मस्तिश्क को शीतल करती
मानस के बहुत मंथन से
जन्म होता है
कविता का जो
पाठक को एक विचार में
मथता छोड़ देती है््््््



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